ग़ज़ा में मदद केंद्रों के पास हुई हत्याओं को चश्मदीद ने बताया 'जनसंहार', इसराइल क्या बोला

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- Author, जेरेमी बोवेन
- पदनाम, अंतरराष्ट्रीय संपादक,बीबीसी न्यूज़
दक्षिणी ग़ज़ा में ग़ज़ा ह्यूमनेटेरियन फाउंडेशन (जीएचएफ़) के मदद केंद्रों पर खाना और दूसरी चीजें लेने पहुंच रहे फ़लस्तीनियों पर इसराइली सेना की ओर से फ़ायरिंग की ख़बरें हैं.
चश्मदीदों और अंतरराष्ट्रीय मेडिकल टीमों का कहना है कि उन्होंने मंगलवार को तड़के मदद बांटी जाने वाली जगहों पर पहुंचने वाले फ़लस्तीनियों पर इसराइली सैनिकों की फ़ायरिंग के भयानक मंज़र देखे.
एक विदेशी चश्मदीद ने कहा ये 'पूरी तरह जनसंहार' था.
लेकिन इसराइली सेना का आधिकारिक बयान दूसरी ही कहानी कह रहा है. उसका कहना है 'कुछ संदिग्ध' मदद केंद्रों तक पहुंचने के लिए 'तय रास्तों' से अलग हट कर उनकी ओर बढ़ रहे थे.
इसे देखते हुए सैनिकों ने पहले 'चेतावनी देने की लिए गोलियां' चलाई. इसके बाद उन संदिग्धों पर फ़ायरिंग की गई जो सैनिकों की ओर बढ़ रहे थे.
ग़ज़ा में मदद बांटने वाली विवादास्पद व्यवस्था की पहले ही आलोचना हो रही थी. लेकिन अब खाना लेने के लिए आने वाले लोगों की हत्या से ये बढ़ जाएगी.
ग़ज़ा में मदद बांटने की नई स्कीम इसराइल ने बनाई है और इसमें उसे अमेरिका की मदद मिल रही है. ये स्कीम वहां सहायता पहुंचाने का काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र और दूसरी अनुभवी विदेशी मदद संगठनों को हटाने के लिए शुरू की गई है.
मदद बांटने वाले जीएचएफ़ की क्यों हो रही है आलोचना

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अब वहां एक नई निजी संस्था ग़ज़ा ह्यूमेनेटेरियन फ़ाउंडेशन मदद बांट रही है. ये संस्था वहां हथियारबंद सुरक्षा बलों की मदद ले रही है.
उसके केंद्रों पर ये सुरक्षाकर्मी एक अमेरिकी कंपनी मुहैया करा रही है. अभी तक ये मदद केंद्र दक्षिणी ग़ज़ा के उन इलाकों में ही हैं जहां पूरी तरह इसराइल का नियंत्रण है.
तमाम देशों और संयुक्त राष्ट्र की ओर से 'फूड इमरजेंसी' पर डेटा जुटाने वाली एजेंसी के मुताबिक़ ग़ज़ा में भोजन और दूसरी मदद पहुंचने पर इसराइल ने पूरी तरह रोक लगा रखी थी.
इससे वहां अकाल का जोखिम बढ़ गया था. इसके बाद ही वहां ग़ज़ा ह्यूमनेटेरियन फ़ाउंडेशन ने अपना काम शुरू किया था.
इसराइल का दावा है कि जब हमास ग़ज़ा में आ रही ज्यादातर मदद लूट रहा था तो संयुक्त राष्ट्र का स्टाफ वहां खड़ा था.
लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इन दावों का खंडन किया है. इसने कहा है कि वह बांटी गई मदद का हिसाब दे सकता है. संयुक्त राष्ट्र ने जीएचएफ़ के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया है.
अब ये साफ हो चुका है कि जीएचएफ़ की व्यवस्था में कुछ बुनियादी ख़ामियां हैं. मदद बांटने वाले संगठनों से जुड़े पेशेवरों के लिए ये एक बड़ी आशंका की वजह है.
पिछले सप्ताह जीएचएफ़ के प्रमुख जेक वुड ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था कि ये संगठन ''मानवता, तटस्थता, निष्पक्षता और स्वतंत्रता'' के सिद्धांतों पर ख़रा नहीं उतर पाएगा.
संयुक्त राष्ट्र का मदद बांटने के केंद्रों का एक व्यापक नेटवर्क है. उसने ग़ज़ा में कई सामुदायिक किचन और बेकरियों को चीजों की सप्लाई की है. इनसे वहां हजारों लोगों को खाना मिलता है.
जीएचएफ़ का जो सिस्टम है उसके तहत ग़ज़ा के लोगों को मदद के लिए उसके बनाए केंद्रों पर आना ज़रूरी है.
ऐसे में उन्हें दक्षिणी ग़ज़ा में वॉर जोन से गुजरना पड़ता है. इस सिस्टम के आलोचकों का कहना है कि इससे बुजुर्गों, बीमारों, घायलों और बुजुर्गों का इन केंद्रों तक पहुंचना मुश्किल है.
जीएचएफ़ के सिस्टम में क्या हैं ख़ामियां

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इसके अलावा मदद बांटने में भी गड़बड़ियां दिखी हैं. यहां अक्सर छीना-झपटी दिखती रही है.
मजबूत कद-काठी वाले लोग सारी चीजें लेकर चले जाते हैं. कमजोर लोगों को कुछ नहीं मिलता. मदद के लिए भेजी जाने वाली चीजें भी पर्याप्त नहीं हैं.
बड़ी तादाद में फ़लस्तीनी लाइनों में रात भरे खड़े रहे. राशन न मिलने की वजह से उनकी स्थिति दिनोंदिन खराब होती जा रही है.
ऐसा लगता है कि आज सुबह इसराइली सैनिकों ने उन पर गोलियां चलाईं जो जानलेवा हो सकती थीं.
ग़ज़ा में खाना लेने आए लोगों की हाल में हुई हत्याओं से पहले मानवाधिकार के यूएन हाई कमिश्नर वॉल्कर टर्क ने बीबीसी से एक इंटरव्यू में कहा, ''जीएचएफ़ ने नागरिकों की पूरी तरह अनदेखी की है. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि तीन महीने से खाना और दवा के बगैर लोग किस कदर बेचैन हैं. और अब उन्हें पूरी तरह बदहवासी भरे माहौल में दौड़-दौड़ कर खाना लाने के लिए जाना पड़ रहा है.''
उन्होंने कहा, ''इसराइल का ये रवैया साफ तौर पर ये दिखाता है कि उसने युद्ध के नियमों की पूरी तरह अवमानना की है. वो नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकाम रहा है.''
कहा जा रहा है कि इसराइली फ़लस्तीनी नागरिकों को काबू और एक तरह से कैद में रखने लिए इस तरीके का इस्तेमाल कर रहा है. इसराइल के मंत्री भोजन को जंग के हथियार के तौर पर इस्तेमाल के बारे में खुलकर बोल चुके हैं. इसराइल के रक्षा मंत्री इसराइल कात्ज़ ने इसे हमास के ख़िलाफ़ एक दांव बताया है.
भूख से जंग

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इसराइल ने दो मार्च को ग़ज़ा में आने वाली मदद की पूरी तरह नाकाबंदी कर दी थी. इसके दो सप्ताह बाद उसने हमास के साथ दो महीने के संघर्ष विराम को ख़त्म कर ग़ज़ा में सैन्य हमले शुरू कर दिए.
इसराइल ने कहा है कि उसने ये क़दम ग़ज़ा में अभी भी हमास की क़ैद में रखे गए 58 बंधकों की रिहाई के लिए उठाया है. माना जा रहा है कि इन बंधकों में से 23 जीवित हैं.
19 मई को इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने एक व्यापक हमले को हरी झंडी देते हुए कहा कि वो सेना को 'ग़ज़ा के सभी इलाकों को नियंत्रण' में लेते हुए देखना चाहेंगे.
कहा जा रहा है कि नेतन्याहू की इस योजना में उत्तरी ग़ज़ा को पूरी तरह नागरिकों से खाली करा कर उन्हें जबरदस्ती दक्षिणी ग़ज़ा में विस्थापित कर देना शामिल है.
हालांकि अमेरिका पर सहयोगी देशों के दबाव के बाद नेतन्याहू ने कहा कि उनका देश ग़ज़ा में 'बुनियादी' मात्रा में भोजन ले जाने की अनुमति देगा ताकि वहां अकाल की स्थिति न आए.
इसराइली अधिकारियों ने कहा है कि इसके बाद से उन्होंने आटे, बेबी फ़ूड्स और मेडिकल के सामान समेत दूसरी चीजों के 665 ट्रकों को ग़ज़ा में आने की अनुमति दी है.
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के प्रमुख ने रविवार को चेतावनी दी थी कि ग़ज़ा में भयावह भूख, बुनियादी भोजन सामग्री के अभाव और आसमान छूती क़ीमतों के बीच ये मदद 'ऊंट के मुंह में जीरे' के बराबर है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, आने वाले महीनों में ग़ज़ा में लगभग 5 लाख लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा.
7 अक्तूबर 2023 को हमास ने सीमा पार कर इसराइल पर हमला किया था. इस हमले में 1200 लोगों की मौत हो गई थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया गया था.
इसके बाद इसराइल ने ग़ज़ा में हमले शुरू कर दिए थे. हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, अब तक इन हमलों में ग़ज़ा में 53,997 लोग मारे जा चुके हैं. इनमें वो 3,822 लोग भी शामिल हैं जो 10 सप्ताह पहले युद्धविराम के बाद इसराइल की ओर से दोबारा हमले के शिकार हुए हैं.
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